ये गीत दर्द और हौसले की बात करता है—गिरने के बाद भी उठने की।
"फिर भी चलूंगा"
(Verse 1)
थक गया हूँ, रूठ गया हूँ,
खुद से ही मैं टूट गया हूँ।
रास्ते धुंधले, छांव भी कम,
कोई नहीं पूछे, "कैसे हो तुम?"
(Pre-Chorus)
हर कदम जैसे कांटों भरा,
दिल ने मुझसे कुछ ना कहा।
पर अगर रुका तो हार जाऊँगा,
खुद से ही मैं दूर जाऊँगा।
(Chorus)
फिर भी चलूंगा, गिर कर उठूंगा,
आंधियों में भी मैं जलूंगा।
जो भी हो, राहें जो,
टूटे सपनों को जोड़ूंगा।
फिर भी चलूंगा...
(Verse 2)
आईने में सवाल खड़े हैं,
जवाब देने को लफ्ज़ कड़े हैं।
ज़ख्म भी मेरे मुस्कुराते हैं,
पर जख्मों में भी मैं गाता हूँ।
(Pre-Chorus)
हर हार एक सबक बने,
हर दर्द एक शक्ति बने।
अगर आज रूका तो खो जाऊँगा,
खुद को फिर कभी ना पा पाऊँगा।
(Chorus)
फिर भी चलूंगा, गिर कर उठूंगा,
आंधियों में भी मैं जलूंगा।
जो भी हो, राहें जो,
टूटे सपनों को जोड़ूंगा।
फिर भी चलूंगा...
(Bridge)
ये जंग मेरी, मेरी ही सही,
ख्वाब अधूरे नहीं रहेंगे कभी।
कोई ना देखे, कोई ना सुने,
फिर भी मैं चलूंगा...
(Outro)
सिर्फ जीत नहीं, सिर्फ मंज़िल नहीं,
बस खुद से खुद तक का सफ़र सही।
जो भी हो, दर्द जो,
साए से भी मैं लड़ूंगा...
फिर भी चलूंगा...
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